10 April 2010

क्यों शहरों में आकर

क्यों शहरों में आकर ऐसा लगता है।
जीवन का रस सूखा–सूखा लगता है।

मानें तो सबके ही रिश्ते हैं सबसे
वर्ना किसका कौन यहाँ क्या लगता है?

जीवन का अंजाम नज़र में रख लें तो
सब कुछ जैसे एक तमाशा लगता है।

गाँव छोड़कर शहरों में जब आए तो
हमको अपना नाम पुराना लगता है।

बारुदी ताक़त है जिसके हाथों में
उसको ये संसार ज़रा-सा लगता है।

–ओमप्रकाश यती

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