10 April 2010

होने में सुबह पलक झपकने की देर है

होने में सुबह पलक झपकने की देर है।
सूरज में जमी बर्फ़ पिघलने की देर है।

यह भीड़ तोड़ डालेगी हर शीशमहल को
पत्थर कहीं से एक उछलने की देर है।

बनने लगेगा कारवां आने लगेंगे लोग
घर छोड़ के बस तेरे निकलने की देर है।

फूलों के बिस्तरे पे पहुँचना नहीं कठिन
काँटों के रास्ते से गुज़रने की देर है।

जिस काम को ‘यती’ समझ रहे हो असंभव
उस काम को करने पे उतरने की देर है।

–ओमप्रकाश यती

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