21 March 2014

हँसी ख़ामोश हो जाती

-ओम प्रकाश यती

हँसी ख़ामोश हो जाती, ख़ुशी ख़तरे में पड़ती है
यहाँ हर रोज़ कोई ‘दामिनी’ ख़तरे में पड़ती है

जुआ खेला था तो ख़ुद झेलते दुशवारियाँ उसकी
भला उसके लिए क्यों द्रौपदी ख़तरे में पड़ती है

हमारे तीर्थों के रास्ते हैं इस क़दर मुश्किल
पहुँच जाओ अगर तो वापसी ख़तरे में पड़ती है

पहाड़ों - जंगलों से तो सुरक्षित है निकल आती
मगर शहरों के पास आकर नदी ख़तरे में पड़ती है

तभी वो दूसरे आधार पर ईनाम देते हैं
अगर प्रतिभा को देखें, रेवड़ी ख़तरे में पड़ती है

ज़रा बच्चों के ‘मिड-डे-मील’ को तो बख़्श दो भाई
ये हैं मासूम, इनकी ज़िन्दगी ख़तरे में पड़ती है

परोसा है ग़ज़ल के नाम पर फिर ‘फेसबुक’ ने कुछ
नहीं ‘लाइक’  करूँ तो दोस्ती ख़तरे में पड़ती है

-ओमप्रकाश यती

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