10 April 2010

कुछ खट्टा कुछ मीठा लेकर

कुछ खट्टा कुछ मीठा लेकर घर आया।
अनुभव कैसा–कैसा लेकर घर आया।

खेल–खिलौने भूल गया सब मेले में
वो दादी का चिमटा लेकर घर आया।

होमवर्क का बोझ अभी भी सर पर है
जैसे तैसे बस्ता लेकर घर आया।

उसको उसके हिस्से का आदर देना
जो बेटी का रिश्ता लेकर घर आया।

कौन उसूलों के पीछे भूखों मरता
वो भी अपना हिस्सा लेकर घर आया।

–ओमप्रकाश यती

3 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण गजलें हैं।
    -दिनेश

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  2. उसको उसके हिस्से का आदर देना
    जो बेटी का रिश्ता लेकर घर आया।

    नमस्ते
    बहुत सही शेर कहा है आपने
    अच्छा लगा इतना अच्छा ख्याल पढ कर

    सखी

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  3. भाई दिनेश जी ,
    ग़ज़लें पढ़ने और प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद....."यती"

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