कुछ खट्टा कुछ मीठा लेकर घर आया।
अनुभव कैसा–कैसा लेकर घर आया।
खेल–खिलौने भूल गया सब मेले में
वो दादी का चिमटा लेकर घर आया।
होमवर्क का बोझ अभी भी सर पर है
जैसे तैसे बस्ता लेकर घर आया।
उसको उसके हिस्से का आदर देना
जो बेटी का रिश्ता लेकर घर आया।
कौन उसूलों के पीछे भूखों मरता
वो भी अपना हिस्सा लेकर घर आया।
–ओमप्रकाश यती
अनुभव कैसा–कैसा लेकर घर आया।
खेल–खिलौने भूल गया सब मेले में
वो दादी का चिमटा लेकर घर आया।
होमवर्क का बोझ अभी भी सर पर है
जैसे तैसे बस्ता लेकर घर आया।
उसको उसके हिस्से का आदर देना
जो बेटी का रिश्ता लेकर घर आया।
कौन उसूलों के पीछे भूखों मरता
वो भी अपना हिस्सा लेकर घर आया।
–ओमप्रकाश यती
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण गजलें हैं।
ReplyDelete-दिनेश
उसको उसके हिस्से का आदर देना
ReplyDeleteजो बेटी का रिश्ता लेकर घर आया।
नमस्ते
बहुत सही शेर कहा है आपने
अच्छा लगा इतना अच्छा ख्याल पढ कर
सखी
भाई दिनेश जी ,
ReplyDeleteग़ज़लें पढ़ने और प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद....."यती"