10 April 2010

तुम्हें कल की कोई चिन्ता

तुम्हें कल की कोई चिन्ता नहीं है।
तुम्हारी आँख में सपना नहीं है।

ग़लत है ग़ैर कहना ही किसी को
कोई भी शख्स जब अपना नहीं है।

सभी को मिल गया है साथ ग़म का
यहाँ अब कोई भी तनहा नहीं है।

बँधी हैं हर किसी के हाथ घड़ियाँ
पकड़ में एक भी लम्हा नहीं है।

मेरी मंज़िल उठाकर दूर रख दो
अभी तो पाँव में छाला नहीं है।

–ओम प्रकाश यती

No comments:

Post a Comment