10 April 2010

पर्वत, जंगल पार करेगी

पर्वत, जंगल पार करेगी बंजर में आ जाएगी
बहते–बहते नदिया इक दिन सागर में आ जाएगी

कोंपल का उत्साह देखकर शायद मोम हुआ होगा
वर्ना इतनी नरमी कैसे पत्थर में आ जाएगी

बहनों की शादी का कितना बोझ उठाना है मुझको
ये बतलाने वाली लड़की अब घर में आ जाएगी।

भाभी जब भाभी माँ बनकर प्यार लुटाएगी अपना
लछिमन वाली मर्यादा भी देवर में आ जाएगी।

कारण बहुत निराशा के हैं, मुश्किल हैं राहें लेकिन
कोशिश करने से तब्दीली मंज़र में आ जाएगी।

शाम हुई तो कुछ रंगीनी बढ़ जाएगी शहरों की
और गाँव की बस्ती काली चादर में आ जाएगी।

–ओम प्रकाश यती

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